नये युग की नारी
नये युग की नारी
देश के नये युग की नारी बन,
हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कर दिखाऊंगी।
अपने पुलकित नए हौसलों से,
कुछ अलग करके नाम कमाऊंगी।।
पहले जैसी अबला नहीं हूं मैं,
जो समाज की कुरीतियों से डर जाउंगी।
करुणा की सागर कहलाती हूं मैं,
उठती लहरों के समान हूंकार भरूंगी।।
अब बदलेगी हमारी अपनी पहचान
मधुर वाणी और संयम बनाएगी मेरी शान
एक साड़ी में लिपटी ना हो हमारी परिभाषा
कुछ कर गुजरने की प्रबल हो आशा
चाहे युग कितने ही बदल जाए,
मैं ही जगत जननी कह लाऊंगी।
किसी के हाथ की कठपुतली नहीं हूं,
अपना सूरज खुद चमका आऊंगी।।
देकर देश को नई प्रगति की दिशा,
मैं देश प्रेम का धर्म निभाऊंगी।
हां मैं हूं नए युग की नारी,
कुछ अलग करके नाम कमाऊंगी।।
