नया साल
नया साल
एक गया तो दूजा ये शुरू हुआ,
बस वक़्त था कुछ ठहरा हुआ।
ठहराव ये आखिर यों कब तक,
ज़र्रा ज़र्रा खुद में सिमटा हुआ।
रुकी ज़िन्दगी में चलने की चाह,
सब कुछ मग़र बस सहमा हुआ।
सहमे कदमों में आहट बाक़ी थी,
जीने का फलसफा मिटा हुआ।
अपने ही हाथों तक़दीर का ख़ुदा,
तक़दीर में ही है आज लुटा हुआ।
बहुत मान लिया खुद को ख़ुदा,
मग़र तू न कभी यहाँ ख़ुदा हुआ।
ख़ुदा ने ही तुझे यों सिखा दिया,
तू तो ब
स उसकी कठपुतली हुआ।
कितने सपने थे, कितने अपने थे,
सब खेल लक़ीरों में लिखा हुआ।
राजा रंक हुए, रंक राजा हो गए,
कब मिट्टी का पुतला ताउम्र हुआ।
पल ही में सब के घमण्ड चूर हुए,
अब नया साल फिर से खड़ा हुआ।
नया साल अब खुशियों से भरा रहे,
यों न रहे अब बस सब ठहरा हुआ।
उम्मीदें कायम हैं,हमेशा कायम रहेंगी,
ज़िन्दगी का चलना बस अटका हुआ।
दुआओं में तो अब कोई कसर नहीं,
नई सुबह का सूरज अब लटका हुआ।