नव युग के बीज
नव युग के बीज
दलदली, चिकनी ज़मीन में
टखने तक हम धंसे हुए हैं।
धुंध है दूर तलक फैली
आस की ज्योति मन में बसी।
इसे जला कर बढ़े चलेंगे
अपने हर पग में जोश भरेंगे।
संशय में समय गंवाना ना
तितर- बितर पैर बढ़ाना ना।
एक कदम अंगद का रखना
दूजा पग पवन बना लेना।
धरती मां का आव्हान करो
गंगाधर शिव का ध्यान धरो।
नीलकंठ की कृपा जो होगी
तब डमरू की थाप पड़ेगी।
दलदल को खेत बना लेंगे हम
तारे आंखो में जला लेंगे हम।
धुंध से नीर निकाल ही लेंगे
नवयुग के बीज को सींचेंगे।