नव उड़ान
नव उड़ान
लोक लाज दरकिनार कर,
चल उठ निकल कमर कसकर,
खुद उठाने भार गृहस्थी का,
लाख रोड़े आयें या पड़ें पत्थर,
स्त्री खुद में कमज़ोर नहीं,
ये इल्म हुआ बुरे वक़्त पर,
अपने दम आगे अब बढ़ना है,
उसको ना मुश्किलों का डर,
काले सायों से खौफज़दा नहीं,
मुकाबला करना होगा डटकर,
उठाकर स्वाभिमान का हथौड़ा,
आगे बढ़ तोड़ दे अवरोधी पत्थर,
जब आदि शक्ति सुन गर्वित हो तो,
ना कुम्हलाना श्रमदानी कहलाकर,
तुममें बल है,बुद्धि है,जज़्बा भी है,
जीवन पथ पर यूँ ही रहना अग्रसर,
कोमल है अब कमज़ोर नहीं,
रख देना है तुझे भ्रम बदलकर,
आँचल में बाँध ले ख्वाहिशें सारी,
जग जीत ले नव उड़ान भरकर।