नरेन्द्र मोदी
नरेन्द्र मोदी
तपते रहे गली मोहल्ले सेवा भाव में हुजूर,
वरना छत तो हमें भी नसीब थी।
कुछ तो फर्क होगा दिन और रात में,
वरना जवानी तो हमारी भी कुछ कम नहीं थी।
वो उड़ान तो उसी दिन ख़त्म कर दी थी जनाब,
जिसमें मिट्टी का पता भूल जाया करते थे।
अरे प्रण जमीं पर चलने का लिया था हुजूर,
बेवजह सर झुकाने की आदत तो हमारी भी न थी।
लेट गये आराम से तूफ़ानों में,
वरना तूफानों से लड़ना तो हम भी जानते थे।
कुछ तो फर्क होगा जलने और पिघलने में,
वरना खता तो ख़त से हम भी किया करते थे।
वो चिंगारी तो कब की बुझा दी साहब,
जिसे वो हवा देने की फ़िराक में थे।
कुछ तो फर्क होगा कल और आज में,
वरना बेवजह बाल सफ़ेद रखने के आदत तो हमारी भी न थी।