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रोटी

रोटी

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तू क्यूँ धर्मनिरपेक्ष पगली,
क्या तेरा कोई धर्म नहीं?
विचारशून्य ! क्या तेरा कोई अस्तित्व नहीं?
तू क्यूँ धर्मनिरपेक्ष पगली,
क्या तेरा कोई कर्म नहीं?
आधारहीन! जड़ता लिए,
क्या तेरा कोई तथ्य नहीं?
हे भूमिपुत्र ! खतरा मेरे अस्तित्व का नहीं,
धर्मों की भी कमी नहीं,
बंदिश माँ के हाथ की रही,
जिसके हाथों बनती सवंरती रही,
सच नहीं कि माँ का कोई धर्म नहीं?
माँ सर्वथा धर्मनिरपेक्ष रही,
बस कसम अब माँ के हाथों की,
मानवता सर्वोपरि अभी।
हे भूमिपुत्र! हाँ मेरा कोई धर्म नहीं।
मैं तो माँ के हाथों में पलती रही,
मैं तो धर्मनिरपेक्ष ही सही।
मैं तो धर्मनिरपेक्ष ही सही।।


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