नफ़रत न फैल जाए संभल जाओ।
नफ़रत न फैल जाए संभल जाओ।
नफरत न फैल जाए, संभल जाओ चमन वालों ।
कुछ दौर ही ऐसा है सब , मिल के संभालो।
कुछ गिद्ध बैठे हैं , मौके की तलाश में।
नजरें दौड़ओ देखो, अपने आस-पास में।
ऐसा ना हो कि खुद ही घर को जला डालो...
हम जोश और आवेश में गलती जो करेगें।
लम्हों की खता में ,सजा ता-उम्र भरेंगे।
मजहब नहीं , संविधान को हाथों में उठा लो...
यह गुलिश्तां हमारा है, हर रंग के फूल हैं।
सब की महक अलग है , फिर भी कुबूल हैं।
सबको मिला कर एक, गुलदस्ता बनालो...
छोटे बड़े बुजुर्ग और जवान मिल चलो।
माताएं-बहनें,देश के किसान मिल चलो।
आपस के भेदभाव को , सारे भूला डालो...
अलग छांट दो उन्हें,जिनका नफरत ही सवाल है।
फिर तोड़ दे हमको भला, किसकी मजाल है।
मिलकर सभी एक साथ , तिरंगे को उठालो...
