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Mohammad Gelani Pasha

Tragedy

3  

Mohammad Gelani Pasha

Tragedy

नफरत की आँधी |

नफरत की आँधी |

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आँधी चली है नफरत की बड़ी ज़ोर से ,

बस अब बारिश होनी बाकी है ,

पतनाले ,नालियां और गटर ठसा ठस भर जाएं , 

इस बारिश के पानी से जो हो ख़ून कि शक्ल में।

आँधी चली है..... 

कड़कड़ाती बिजली की आड़ में आसान है घर में घुसना,

बेटी को माँ के सामने ,माँ को बेटी के सामने ,

नोंच कर बना दिया जाता है मांस का लोथड़ा।

हवाओं के थपेड़े रोक देते हैं निकलने वाली चीखों की आवाज़,

आँधी चली है....

क्या दीवाली ,क्या ईद ,क्या वो गले मिलना होली के रंग में ,

अब्बू के पैर छूना ,सिरहाना छोड़कर उठ जाना पिता के लिए। 

रहा होगा एक दूसरे का रिवाज नफरत की आंधी से पहले,

पर कैसे बैठा होगा वो सीने पर छाती को नोंच कर उसकी। 

हाँ आँधी चली है....


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