नमन सत्य को
नमन सत्य को


ढूंढ ना पाया स्पन्दन
कहीं अपने हृदय में
मैं चला था
ढूँढने सत्य को ।
मृदुल वाणी असत्य थी
आकाश था खोखला
आत्मा थी व्यथित लेकिन
जानने को स्वयं को ।
मंदिरों में, मस्जिदों में
चित्रकार थे ईश्वर के
देखा सब व्याकुल हैं
ईश्वर के अन्वेषण को ।
ना हृदय ही ईश्वर है
ना ईश्वर है संसार
हे अदृश्य! तू ही दिखा
दृश्य तेरा एक बार ।
अप्रकट अब था प्रकट
हुआ अदृश्य दृश्यमान
ना थी आत्मा, ना हृदय
ना था वो अहंकार।
ना ही मृत ना ही अमृत
ना ही वो जीवन का तार।
ना वो मेरा रक्त था
मैं उससे विरक्त था,
ना वो किसी से क्षीण था
ना था वो शक्ति अपार।
वो पृथक जगत का जनना
घुल गया बना गया सार
वन्दन नमन कर लूं उसको
जिस सूक्ष्म से बने विस्तार ।