Shailaja Bhattad
Tragedy
आंखों में गर नमी सी थी
कम कर ली होती, रिश्तो में जो कमी सी थी ।
श्री राम
भक्त वत्सल रा...
बसंत पंचमी-1
वसंत पंचमी
हरिधुन
जय श्री राम
रघुनंदन
जयसियाराम 1
राम विधाता
खामोश मन की तलाश है, ना जाने क्यूँ आज ये दिल उदास है। खामोश मन की तलाश है, ना जाने क्यूँ आज ये दिल उदास है।
छूना चाहा उसको झटका मेरे बेटे ने दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने । छूना चाहा उसको झटका मेरे बेटे ने दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
मन्दिर मस्जिदों पर लाखों लुटते, गरीब के बच्चे बिन छत के सोते। मन्दिर मस्जिदों पर लाखों लुटते, गरीब के बच्चे बिन छत के सोते।
जीवन की मृगतृष्णा में वृद्ध मात- पिता की उम्मीदों ने, आखिर दम तोड़ दिया....... । जीवन की मृगतृष्णा में वृद्ध मात- पिता की उम्मीदों ने, आखिर दम तोड़ दिया.....
आज की लड़कियां, प्रेम करती हैं पैसा,पावर देखकर! आज की लड़कियां, प्रेम करती हैं पैसा,पावर देखकर!
मक़सद ख़ुदा का है ऐ बंदे प्यार मोहब्बत आदत पाल ये खेल बुराई के हैं गंदे! मक़सद ख़ुदा का है ऐ बंदे प्यार मोहब्बत आदत पाल ये खेल बुराई के हैं गंदे!
अन्धविश्वास एक धीमा ज़हर है जो संहार करता है सबका ! अन्धविश्वास एक धीमा ज़हर है जो संहार करता है सबका !
कहते हैं तल्ख अनुभव से लफ्जों को भी निचोड़ लें रहे हो। कहते हैं तल्ख अनुभव से लफ्जों को भी निचोड़ लें रहे हो।
कुछ करना चाहती हूँ मैं अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ। कुछ करना चाहती हूँ मैं अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ।
किसने सोचा था आएगा, एक साल ऐसा भी । जब घर जाकर अपनो से मिलना, लगने लगेगा सपना ही । किसने सोचा था आएगा, एक साल ऐसा भी । जब घर जाकर अपनो से मिलना, लगने लगेग...
दूर हुए सब रिश्ते नाते किसकी राहें देखूं मैं ! दूर हुए सब रिश्ते नाते किसकी राहें देखूं मैं !
दुर्गा, काली, सरस्वती का रूप कही जाती है। पर दुष्टों के दुष्कर्मों से कहां ये बच पाती दुर्गा, काली, सरस्वती का रूप कही जाती है। पर दुष्टों के दुष्कर्मों से कहां ये...
आज जब लिखना जानता हूँ तो कलम छीन लेते हैं लोग ! आज जब लिखना जानता हूँ तो कलम छीन लेते हैं लोग !
क्यों मानवता की जड़ें इस सघन धरती से ,रह रह कर कतरा रहीं! क्यों मानवता की जड़ें इस सघन धरती से ,रह रह कर कतरा रहीं!
मगर वह हार गया जब प्रेम मेरे साथ और नफरत उसके साथ थी खड़ी। मगर वह हार गया जब प्रेम मेरे साथ और नफरत उसके साथ थी खड़ी।
भूले से भी याद नहीं क्यों ? तुम भी इसी देह से जन्मे ! भूले से भी याद नहीं क्यों ? तुम भी इसी देह से जन्मे !
ऐसे तो क्षण कभी न बीते साजन बिन हम रहे रीते अब के सावन में......! ऐसे तो क्षण कभी न बीते साजन बिन हम रहे रीते अब के सावन में......!
वो मांगती कुछ तुमसे नहीं है जीना मगर क्या उसका हक नहीं है ? वो मांगती कुछ तुमसे नहीं है जीना मगर क्या उसका हक नहीं है ?
अपने ही अपनों के हृदय पर ,ऐसी कर रहे चोट , लकड़ी ही जंगल को काटे, बन कुल्हाड़ी की मोंठ । अपने ही अपनों के हृदय पर ,ऐसी कर रहे चोट , लकड़ी ही जंगल को काटे, बन कुल्हाड़ी की...
तब.. धर्मों को गढ़ा जातियों को जन्म दिया परम्पराओं की दुहाई दी! तब.. धर्मों को गढ़ा जातियों को जन्म दिया परम्पराओं की दुहाई दी!