निशाकर का यौवन
निशाकर का यौवन
गगन के आँगन में टिमटिमाते तारों की लड़ी,
निशाकर की चाँदनी का अनन्य अवलोकन,
तिमिर को दूर करता हुआ चंद्रराज का यौवन।।
मानो श्रृंगारित सुसज्जित जादुई वरदानी छड़ी हो।
शनै शनै पूर्ण से अपूर्ण की ओर खिसकता सा,
राकेश की अद्भुतता, लघुत्व की ओर बढ़ता सा,
नभ की गोद में बलखाती कलाओं का अस्वादन,
श्वेत चाँदनी की मनोहर झाँकियों का अवलंबन।
चाँदनी से मिलाप व बिछड़न का अजब वियोग,
पूर्णतया से आंशिक रूप का वो नफीस आलम,
पुनः स्थापना की लिए अम्बर में समायोजित क्षण,
घनघोर अंधकार छवि के संयोग से बदलते पल।।
प्रतीत होता जीवन के हर्ष विषाद का एहसास,
एक क्षण में चाँद की चाँदनी का सुनहरा साथ,
दूज़े ही पल में काली अमावस्या की अमिट रात,
कलाओं का पुनः सिमटकर छिपने का बदलाव।।
सच! प्राकृतिक राकेश की चाँदनी की स्वर्ण स्तूति,
संयोग - वियोग की अनोखी अनुपम अनुभूति,
शुक्ल, कृष्ण का निरंतर चलते रहने का आह्वान,
पल- पल अध्ययन कराते पक्षों की महत्व पूर्ति।।
अद्भुत, अनुपम है। अद्भुत, अनुपम है।।
अद्भुत अनुपम है।।।
