निर्झर बहता जाए
निर्झर बहता जाए
निर्झर का कल कल स्वर मानो जीवन संगीत सुनाए,
सुख दुःख को साथ अपने लेकर, निर्झर बहता जाए,
ऐसी ही कुछ ज़िंदगी हमारी किरदार आते चले जाते,
फिर भी रुकता न जीवन हमारा निरंतर चलता जाए।
सुख-दुख की यहाँ आती बेला,जीवन का यही खेला,
कभी आसमां की ऊंँची उड़ान, कभी खाई में धकेला,
विहंगम है यहांँ हर मोड़ पर, जाने कौन सा इम्तिहान,
किस पल में क्या होगा,कोई नहीं यहांँ समझने वाला।
निरंतर गर गति ना हो निर्झर में, तो है वो मृत समान,
जीवन ठहराव भी तो मृत्यु,नहीं कोई इससे अनजान,
कभी न ख़त्म हो होने वाला संघर्ष,यह जीवन हमारा,
इन्हीं संघर्षों के बीच बनानी पड़ती है अपनी पहचान।
गतिशीलता से ही निर्झर का अस्तित्व सदैव सुरक्षित,
सहज स्वीकार कर चलो, यहांँ सब कुछ है परिवर्तित,
आसान नहीं जीवन का सफ़र,पग-पग पर यहांँ कांटे,
जिसमें चलते-चलते, कभी हार तो कभी होती जीत।
घबराए न जो हार से वही मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ,
इसलिए तू कर्म करता जा अपना, समय न कर व्यर्थ,
स्थिति कैसी भी हो जाए तेरी, संघर्ष अपना जारी रख,
ज़ख्म पाकर ही समझ पाएगा,क्या है जीवन का अर्थ।