नहीं पूछना..
नहीं पूछना..
तुम मुझे
अब कुछ भी सही गलत
कह सकते हो,
कुछ भी किसी को भी
कैसा भी समझा सकते हो
मगर अब मुझे
तुम संग जुड़ी वही तिलस्मी
उदासियाँ
फिर से नही देखनी,
उनका हाल
जानते हुए भी नही पूछना।
जानती हूँ खुद को
कि उनकी बात करूँगी तो
उनमे उलझ कर
खुद से दूर
तुम्हे फिर से खुश करने
निकल पड़ूंगी
एक बार और अनजाने ही
उन्हें जीने लगूंगी
तुम्हारी शर्तों पर तुम्हारे हिसाब से
और एक बार फिर
'झूठ' जीते हुए
जीते जी खत्म होती
चली जाऊंगी।
मुझे अब जीना है,
सिर्फ मेरी मुस्कराहटों के लिए।
