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Abasaheb Mhaske

Tragedy

3  

Abasaheb Mhaske

Tragedy

नहीं मालूम जाना कहां ?

नहीं मालूम जाना कहां ?

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सच क्या हैं नहीं मालूम

नहीं मालूम अच्छा - बुरा

निकल पड़ें हैं राह पर

नहीं मालूम जाना कहां ?


हम कैसे बहके जा रहे हैं

बेवजह चहके जा रहे हैं

खो बैठे होश हवास

हम कैसे जी रहे हैं ?


हमारा जीवन डूबती नईया

उनके इशारों पर ता ता थैय्या

सच झूठ कि पहचान नहीं

जीने का कोई मक़सद नहीं


झील झरने का भी होता है मक़सद

कीड़े मकौड़े का भी होता है अस्तित्व

मगर हमने क्या खोया, क्या पाया ?

पता नहीं क्यूँ हम जी रहे हैं ?  


हमारी जिंदगी उनकी जागीर नहीं

हम किसी के ग़ुलाम नहीं, नहीं समझ पाये

उनके द्वारा फेंके गये टुकड़ो पर नहीं जीना

उनके इशारों पर हमे नहीं हैं नाचना



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