नेत्रदान
नेत्रदान
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तेरे नयन नही दो दीप थे ,
ऐसे जैसे चहरे पर दो मोती चिपकाये हों
रंग उनका ऐसा कजरीला था
जैसे आँखों के रंग इन्द्रधनुष से चुराये हों
एक दिन वो अचानक संसार से चल दी
क्या उन अनमोल रत्नो को खोने देते ?
आँखों को चिर निद्रा मे सोने देते ।
उनका सम्मान तो करना था इसलिए नेत्रदान तो करना था ।
देकर ज्योती दूसरे नेत्रहीन को तुम्हे पुनर्जीवित तो करना था ।