STORYMIRROR

Devendraa Kumar mishra

Abstract

4  

Devendraa Kumar mishra

Abstract

नास्तिक

नास्तिक

1 min
313

आओ नास्तिक बने 

आओ वास्तविक बने 

इंसान ही इंसान का सहारा 

कहीं नहीं है भगवान बेचारा 

आते होगे समय समय पर 


इस समय नहीं है 

अच्छा है खेती करें, मजूरी करें 

अपना काम धाम करें 

क्यों समय बर्बाद करें 

क्यों न एक दूसरे को आबाद करें 

किसने देखा, किसने भटकाया,

तुम्हें भगवान की बातों में 

कोई नहीं है, कहीं नहीं है 


हम मनुष्य ही एक दूसरे के सहायक हैं 

बेकार में ईश्वर ईश्वर करते निकम्मे नालायक हैं 

भीख क्यों माँगना 

देता भी दान मनुष्य ही है 

हम किसी मनु की सन्तान नहीं 

अपने बाप की औलाद हैं 

उन्हें पालो, जिम्मेदारी निभाओ 

बेकार में अल्लाह मेहरबान 

चद्दर ढांक कर सो रहे भगवान।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract