नारी....
नारी....


बने जिस देश की नारी गुणकारी,
मैं ऐसी खुद्दारी लिखती हूँ।
नरक में ले जाती है,
ऐसे देश को दिशा।
जँहा नारियों को समझा जाता है
बोझ न कि जिम्मेदारी
मैं ऐसी कहानी लिखती हूँ।
जो नर के साथ जरा-सा ,
कंधा मिलाकर चल ले
तो समझा जाता अहंकारी।
न ध्वस्त हो नारी का सम्मान,
ऐसी उसकी लाचारी लिखती हूँ।
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जहाँ समझा जाता उसे सिर्फ बेचारी,
मैं ऐसी नारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लिखती हूँ।
कामकाजी होने पर भी जिसे न,
दी जाती उसकी हकदारी
मैं अपनी माँ जैसी लाखों माँ ओ
की लाचारी लिखती हूँ।
संघर्ष में जो डटी रही ,
कभी माँ तो कभी अलग रिश्तों में जो जुड़ी रही
मैं ऐसे ही नारी हूँ,
जो सबकी तरह अपनी कहानी
लिखती हूँ।।