शब्द..
शब्द..
दुनिया शब्दों के पीछे भागे
कहाँ तक किसका अंत है,
मन में जो आये वो सब बोल दे
शायद यही शब्दों का भ्रांत है।
मीठे बोल जो शब्द तो सुहावने हो जाते हैं
जिन शब्दों में मिठास ही न हो शब्द,
शब्दों में कहाँ गिने जाते है।
संसद में नेताओं के शब्द कुछ और
तो सिनेमा में अभिनेताओं
के शब्द कुछ और शब्द ही कह जाते है,
मूक व्यक्ति बने हम जनता बगैर शब्दों के रह जाते।।
साँसों की भांति काम करे, शब्द
जो जितना बोले उतना नाम करे।
शब्दों का ही हेर- फेर बच्चा जब कहता रोटी को वोटी,
चला शब्दों का बाण ही वरना
आज की चर्चा संसद में
किसने खींची किसकी चोटी।।
एक शब्द परीक्षा में न समझ
आये तो मुसीबत खड़ी करते हैं,
ये शब्द ही हैं जरा सा तीखेपन से
अपने -अपने में ही लड़ते हैं।
शब्द तीखे हो तो व्यंग कहलाते हैं
शब्द मीठे हो तो स्वर कहलाते हैं।।
वाणी की तन्मयता हो तो
शब्द अच्छे निकल जाते हैं।
आज का युग है,
शब्दों में भी मिलावट न जाने कहाँ से लाते हैं।।