नारी
नारी
नारी में नर समाहित और वो घर की नार(गर्दन)है,
धूरी हैं वो घर की और उससे ही बसता संसार है,
नारी से निखरी क्यारी और उपवन में बहार है।
माँ,पुत्री,अर्धांगिनी हर रूप में रिश्ता सरोबार है
नारी परिवार की कड़ी,जुड़ता उससे घर बार है,
ना वो अनाड़ी ना बेचारी बस समर्पण को तैयार है।
नारी सब पर भारी, नारी हर रूप में सराहनीय है,
वंशवृद्धि की बेल ना कहो उससे ही नर का वजूद है,
नारी जिम्मेदारियों का ज़खीरा नारी से संसार है।।
