नारी
नारी
वह बदल गई
मासूम सी कली से
बंदिशों में जकड़ी कमसिन सी कन्या में
उसे सहेजने की चिंता में,
पुरुष हुआ मुखर
पिता और भाई के रुप में
उसने आशा के दीप जलाए
शायद बंदिशें होंगी कम
पिया संग जियूँगी भरपूर जीवन
वह बदल गई
अल्हड़ सी नवयौवना से
ज़िम्मेदारियों में जकड़ी बोझिल सी स्त्री में
उसके अस्तित्व को रौंदने की चाह में
पुरुष हुआ मुखर
अभिमानी पति के रूप में
उसने फिर आशा के दीप जलाये
शायद अपमान होगा कम,
संतान संग जियूँगी भरपूर जीवन !
वह बदल गई
छली गई पत्नी से, एक ममतामयी माँ में
उसकी ममता को ख़रीदने की चाह में
पुरुष हुआ मुखर
स्वार्थी पुत्र के रुप में
उसने पुन: आशा के दीप जलाए
अब न थामूँगी उम्मीद का दामन
अब ख़ुद के संग जियूँगी भरपूर जीवन
वह बदल गई
सुरमई सी साँझ से सिन्दूरी सी भोर में
निराशा के घने अंधकार से आशा के उजाले में
अब न होगा कोई पुरुष मुखर
विगत को बिसरा, आगे बढ़ने की चाह में !
अस्तित्व की जंग जीत,
स्वयंसिद्धा बन जियेगी जीवन
हाँ, वह नारी है,
शक्ति है,स्वयं में सम्पूर्ण है !
उसका निरीह अबला से
सशक्त सबला में
बदलना ज़रूरी था !