नारी सशक्तिकरण पर कविता
नारी सशक्तिकरण पर कविता
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ।
पर, एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
जब मैं पहले खुद सशक्त हो पाऊँगी।
तभी तो, किसी और लड़की को,
नारी सशक्तिकरण का सही अर्थ समझा पाऊँगी।
जब मैं समाज के बंधनों को तोड़,
अपने निर्णयों की निर्माता खुद बन पाऊँगी।
तभी तो, किसी की प्रेरणा बन पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, अपने हाथों से,
किसी और के हाथ की उँगली में अंगूठी,
मैं भी ज़रूर पहनाऊँगी।
अपने माता-पिता और भाई को,
शादी के बाद भी इतना ही प्यार करूँगी।
अपने पुराने रिश्तों को कभी,
मैं भूल नहीं जाऊँगी।
पहले, मैं यह कसम खाऊंँगी।
तभी, किसी और के हाथों से,
अपनी उंँगली में अंगूठी पहन,
नए रिश्ते को जोड़ पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, किसी और के नाम की हल्दी,
मैं भी लगाऊँगी।
किसी और के रंग में,
मैं भी रंग जाऊँगी।
पर, अपने रंग-ढंग,
मैं बिल्कुल भूल जाऊँ।
यह मैं ना कर पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, मैं भी अपने हाथों पर,
किसी और के नाम की मेहंदी लगवाऊँगी।
पर, अपने नाम और अपनी पहचान को,
मैं यूँ ही नहीं भूल जाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, अपने हाथों से,
किसी और के गले में जयमाला पहना।
अपने अस्तित्व को और
अपने जीवन को नकार नहीं पाऊँगी।
पहले, मैं यह कसम खाऊँगी।
तभी, किसी और के हाथों से,
अपने गले में जयमाला पहन।
उसे अपना पति परमेश्वर नहीं,
बल्कि पूरे मन से,
अपना जीवनसाथी स्वीकार कर पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, मैं भी अपने माता-पिता से,
अपना कन्यादान ज़रूर करवाऊँगी।
पर, अपने माता-पिता की बेटी हूँ और
अपने माता-पिता की बेटी ही रहूँगी।
कन्यादान के बाद भी,
मैं उनके घर की भी लक्ष्मी ही रहूँगी।
यह रिश्ता ना किसी को बदलने दूंगी।
और ना ही खुद कभी बदल पाऊँगी।
कभी किसी त्योहार पर,
कभी किसी होली या दीवाली पर,
अपने माता-पिता को अपने ही लिए,
तरसता हुआ ना देख पाऊँगी।
हर दीवाली उनके पास,
उनकी दीवाली रौशन करने,
मैं दौड़ी चली आऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, मैं भी किसी के संग फेरे लेने को,
अग्नि क इर्द-गिर्द सात चक्कर ज़रूर लगाऊँगी।
पर, उस अग्नि में अपने सपनों की,
अपनी पसंद की और अपनी ख्वाहिशों की,
तिलांजलि मैं नहीं दे पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, अपनी मांग में सिंदूर,
मैं भी भरवाऊँगी।
पर, सिर्फ़ एक लाल रंग के लिए,
अपने जीवन में बाकी के रंगों को,
मैं नहीं छोड़ पाऊँगी।
काला रंग मत पहनो,
शादी के बाद,
काला रंग पहनना अशुभ है।
मैं यह नहीं मान पाऊँगी।
अगर मंगलसूत्र के,
काले मोती पहनना शुभ है।
तो, काले रंग के कपड़ों को अशुभ मान।
मैं उन्हें पहनना नहीं छोड़ पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, मुझे पसंद है।
पायल और चूड़ियांँ खूब सारी।
पर, इन सबसे प्यारी है।
मुझे मेरी आज़ादी।
इसीलिए,
मैं अपनी कलाई की चूड़ियों को,
हथकड़ियांँ नहीं बनने दे पाऊँगी।
मैं अपने गले के मंगलसूत्र को,
फाँसी का फंदा नहीं बनने दे पाऊँगी।
अपने पाँव की पायल को,
पैरों की जंजीरें नहीं बनने दे पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
माना, मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
पर, विदाई की हर रस्म मैं भी निभाऊँगी।
अपनी माँ के आँचल में,
चावल के दाने ज़रूर बिखेर कर जाऊँगी।
पर, अपना आत्मसम्मान मैं,
अपनी माँ के पास नहीं छोड़ कर जाऊँगी।
विदाई की रस्म निभाने से,
मैं पराई नहीं हो जाऊँगी।
शादी के बाद मेहमान बनकर नहीं,
पूरे हक़ से बेटी की तरह ही,
अपनी माँ से मिलने आऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बनकर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
डोली में जाना, अर्थी पर ही आना।
जैसे शब्दों के मायाजाल में,
मैं नहीं यूँ ही फँस जाऊँगी।
मैं खुद सशक्त हूँ ।
मैं खुद एक लेखिका हूँ ।
अपने जीवन के नियमों को,
खुद अपनी कलम से,
कागज पर लिख पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
तुम्हारी जिम्मेदारी होगी,
तुम्हारे घर में मेरा मान।
मेरे माता-पिता का भी,
करना होगा पूरा सम्मान।
घर के बाहर लगी तख्ती पर,
लिखवाना होगा मेरा भी नाम।
गृहस्थी बसाने के लिए,
करना होगा दोनों को मिलकर काम।
यह वचन लेकर ही,
घर को अपना मान।
मैं गृह-प्रवेश की रस्म निभा पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
अपना सरनेम मैं,
यूँ ही नहीं छोड़ पाऊँगी।
तुम्हारा सरनेम भी मैं ज़रूर लगाऊँगी।
अपने नाम के साथ दो-दो सरनेम लगाकर,
दोनों को बराबरी का सम्मान दे,
खुशी-खुशी अपनी ज़िंदगी बिताऊँगी।
पर, अपने माता-पिता का दीया सरनेम।
और उससे जुड़ी पहचान को,
मैं यूंँ ही नहीं छोड़ पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
अच्छी बहू बनने के लिए,
मायके का मोह तो छोड़ना ही होगा।
जैसे, नियमों का पालन मैं नहीं कर पाऊँगी।
मेरा मायका और मेरी माँ,
अनमोल है और सदा रहेगी।
मेरी माँ मुझे विदा कर,
गंगा नहीं नहाएगी।
इसीलिए, माँ की याद आने पर,
माँ से मिलने के लिए,
मैं अपनी मां के पास दौड़ी चली आऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
देश संभाल सकती हूँ ।
और घर भी।
रोटी भले गोल ना सही।
पर, बना भी सकती हूँ।
और कमा भी।
नौकरी करना भी जानती हूँ ।
और देना भी।
इसीलिए,
अगर मैं बहू बनकर,
घर की जिम्मेदारियाँ निभा सकती हूँ ।
तो, अपनी माँ के दिए गहने भी,
मैं बहुत आसानी से,
खुद ही संभाल पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
अगर, मारा कभी एक थप्पड़ तो,
मैं तुम पर चार थप्पड़ बरसाऊँगी।
किसी के अत्याचारों को,
यूँ ही नहीं सह जाऊँगी।
नारी-शक्ति के साक्षात दर्शन,
मैं तुम्हें करवाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
शादी के बाद अपनी ही माँ से,
मिलने की इजाज़त लेने के लिए,
बार-बार किसी के पास मैं नहीं जा पाऊँगी।
पर, माँ से मिलने के लिए,
कभी अपनी जिम्मेदारियों से,
मुंह मोड़ कर नहीं आऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
खुशी-खुशी अपने माता-पिता के,
बुढ़ापे का सहारा बन जाऊँगी।
ससुराल में सब की अपेक्षाएंँ,
पूरी करने के लिए,
मैं अपनी उपेक्षा नहीं कर पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ।
इसीलिए,
जब खुद सम्मान पाऊँगी।
तभी, सब को सम्मान दे पाऊँगी।
अच्छी बहू बनने के लिए,
अपना आत्मसम्मान दाँव पर नहीं लगाऊँगी।
अच्छी बहु कहो ना कहो मर्जी तुम्हारी।
अगर बुरी बहू कहोगे तो भी मैं,
तुम्हारी इस मर्जी को खुशी-खुशी अपनाऊँगी।
अपने आत्मसम्मान को चोट ना लगने दूंगी।
यह कसम खाकर ही,
अपना आत्मसम्मान साथ लाई हूँ।
यह बात बार-बार याद जरूर दिलाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
मैं आज के जमाने की लड़की हूँ ।
इसीलिए,
मानती हूँ कि,
एक दिन मैं भी दुल्हन बनकर जाऊँगी।
पर, सदियों पुरानी जंजीरों को,
जब मैं तोड़ पाऊँगी।
अपने हक के लिए,
जब मैं खुद लड़ पाऊँगी।
अपनी मंजिल को,
जब मैं खुद से ही पाऊँगी।
अपने हिस्से का आसमान,
जब मैं खुद छूकर आऊँगी।
शिक्षा पाकर जब मैं,
आत्मनिर्भर बन जाऊँगी।
आत्मनिर्भर बनकर जब मैं,
देश को आगे बढ़ा पाऊँगी।
समाज के रूढ़ीवादी नियमों का विरोध कर,
उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने की क्षमता,
जब मैं दिखा पाऊँगी।
तब, मैं खुद को सशक्त कहला पाऊँगी।
तब बाकी लड़कियों को,
अपनी आने वाली पीढ़ी को,
नारी सशक्तिकरण का सही अर्थ,
मैं समझा पाऊँगी।
जब मैं एक लेखिका के तौर पर,
अपनी कलम से,
एक नया इतिहास लिख पाऊँगी।
तब,
मैं सशक्त हूँ ।
यह गर्व से कह पाऊँगी।
तब, मैं किसी की प्रेरणा बन पाऊँगी।
हर नारी में शक्ति है।
अपने लिए पहला कदम,
खुद ही उठाना होगा।
नारी सशक्तिकरण का सही अर्थ,
स्वयं ही जानना होगा।
स्वयं एक नारी होते हुए,
दूसरी नारी का सशक्तिकरण होते हुए देख,
खुश होना होगा ।
तभी सही मायनों में,
हर नारी का सशक्तिकरण होगा।
आज मैं हर नारी से,
बस यही कहना चाहूँगी।
और बस यही कह पाऊँगी।
भविष्य में अपनी बेटी को भी,
मैं पहले नारी शक्ति का एहसास करवाऊँगी।
नारी सशक्तिकरण का सही अर्थ,
मैं उसे समझाऊँगी।
स्वयं एक नारी होकर,
नारी की ही दुश्मन ना बनना।
उसे यह बताऊँगी।
समाज के बंधनों को तोड़,
आगे बढ़ना मैं उसे सिखाऊँगी।
अपने निर्णयों की निर्माता,
खुद उसे बनना सिखा पाऊँगी।
तभी तो,
एक दिन मैं अपनी बेटी को भी,
दुल्हन बनाकर विदा कर पाऊँगी।
एक दिन मैं भी दुल्हन बन कर जाऊँगी।
