नाराज़गी
नाराज़गी
इतना तो तुझे पता होगा,
कल भी प्यार करता था और आज भी करता हूँ...
तब ! किस बात की नाराज़गी तुझे...
कि छोटी- छोटी बातों में..
तन्हाई की रातों में रूठ जाती हो...
ये मायूस चेहरा,
पहले कभी देखा नहीं..
जो आज इस तरह गम की धूप में पिघल रहा है
और बात- बात पे मुझे सताती हो...
तेरे दिल में कोई ज़ख्म नहीं...
पता है मुझे...
पर मेरे में तो है..
तो क्यूँ मुझे तड़पाए जा रही हो...
हर इक दर्द और लमहें..
तेरे ही नहीं ' पागल'
मेरे लिए भी है
जो तू मुझे दूर करके..
अपनी आँखों से दरिया बहायें जा रही हो...!

