नाम कमाने निकला हूँ ।
नाम कमाने निकला हूँ ।
नाम कमाने निकला हूँ,
अपना बनाने निकला हूँ।
डूब गया हूँ उल्फ़त में,
उम्र गवाने निकला हूँ।
सारा ज़माना देखा अब,
खुद में समाने निकला हूँ।
रोते हुये जो बच्चे हैं,
उनको खिलाने निकला हूँ।
सींच के डाली उपवन की,
फूल सजाने निकला हूँ।
रूठे हुये जो सदियों से,
उनको मनाने निकला हूँ।
सीपो के घर समंदर में ,
मोती बनाने निकला हूँ।
जल ही है जीवन मछली का,
दाना खिलाने निकला हूँ।
क़ैद में हैं जितने परिंदे,
उनको उड़ाने निकला हूँ।
नाम अमर कर जना है,
क़लम चलाने निकला हूँ।
बुझता "चराग" आँधी में,
फ़िर से जलाने निकला हूँ।
