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Pradeep Rajput "Charaag"

Abstract

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Pradeep Rajput "Charaag"

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अब तलक

अब तलक

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अपनी गलतियां मैंने सजाकर रखी हैं,

पलकें अब तलक मैंने भिगाकर रखी हैं।


गहरे से हुये जब अनदिखे ज़ख्म मेरे,

स्याही में कलम मैंने डुबाकर रखी है।


मुझसे दूर जाकर है सुकूँ में बहुत वो,

यादें सीने से अपने लगाकर रखी हैं।


पर्दा डालता बेकार सी बातों पर अब,

कुछ अच्छाइयाँ मैंने बचाकर रखी हैं ।


नाँदा सोचता कैसे पाऊँगा ये मुहब्बत,

बातें दोस्तों को दिल की बताकर रखी हैं।


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