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Prem Bajaj

Romance

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Prem Bajaj

Romance

ना रूठा कीजिए

ना रूठा कीजिए

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खुदाया यूँ ना रूठा किजिए

हमसे गुलअज़ार-शरीके-ज़िन्दगी,

हमें मनाना नहीं आता।


इल्म नहीं है हमें इश्क जताने का,

जाहिदे नाफहम (नासमझ बैरागी ) हैं,

लज्ज़ते- इश्क लेना नहीं आता।


शीशा-ए-मय की तरह नाज़ुक हो तुम,

दस्ते शौक इसलिए नहीं रखते हम

कही तुम पर ना कोई जब्र ना हो जाए। 


गुल-ओ-गुलशन को तकता हो जैसे कोई,

तुम्हें देख कर तबस्सुम छुपाना नहीं आता।

एहद- शबाब है तुम पे सहवा ( शराब ) सा,

ये भी तो बताना नहीं आता। 


बीमारे- ग़म है,

फिर भी साजे-उलफ़त बजाना नहीं आता।

 ना रूठा कीजिए यूँ हमसे,

के हमें मनाना नहीं आता।


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