ना मैं होता तो क्या होता
ना मैं होता तो क्या होता
शाम का अक्स दिल पर न होता तो क्या होता
सब होता दुनिया में न मैं होता तो क्या होता
अपनी नेकी छुपा के रखता बस खुदा के लिए
मुनाफ़िक़त की महफ़िल में न मैं होता तो क्या होता
लाख बचाया बच न और सका हार गया सब कुछ
इज्ज़त ज़िल्लत की दौड़ में न मैं होता तो क्या होता
पुर सुकून फ़िजा में सांस लेते मकीन खर के
किसी की राह में पत्थर न मैं होता तो क्या होता
दर्द मेरा साथी रहा अंधेरों में उजालों में
झुटी खुशी के नशे में न मैं होता तो क्या होता!