ना जाने कैसी होगी..
ना जाने कैसी होगी..
काश तुम यहाँ होती
तो तुम्हें दिखाता कि
मेरे लेखन का ज़रिया हो तुम,
इस दिल में ठहरी-सी ख्वाहिशों पर
बहते पानी का दरिया हो तुम,
जिसे सुनाता हूँ हर बात तुम्हारी
मेरे ख्वाबों की वो डायरी हो
हरदम रहती इन लबों पर
मेरी सबसे प्यारी शायरी हो।
कभी सोचता हूँ तुम कैसी
होगी
क्या कोई परी या अप्सरा जैसी होगी,
पर नहीं तुम तो मेरे ख्वाबों की रानी हो
इसलिए जो सोचता हूँ शायद तुम वैसे ही होगी ,
थोड़ी नटखट, थोड़ी मासूमियत ऐसी प्यारी-सी सूरत होगी
शरारतों में भी भोलापन हो सादगी की मूरत होगी।
मेरे लेखन की सुंदर पंक्तियों-सी
हर दिल को छू जाने वाली
शब्द-शब्द में रस भरती
मनमोहक इसे कर जाती हो।
मैं ख्वाबों में ही दीदार करुँ
तुम ऐसे मुझे ठग जाती हो
तुम सबको यूँ मोह जाती हो
हर अदा ही क्या गज़ब होगी
क्या उलझी कोई पहेली हो
या सुन्दर कोई गज़ल होगी।
कभी सोचता हूँ काफ़ी मॉडर्न हो
कभी ख्वाबों में यूँ आती हो कि
बर्गर पिज़्ज़ा खाती हो,
रेस्टोरेंट में पार्टी करती हो
मुझ संग एक कप चाय
भी पीने को क्यूँ डर जाती हो?
जो इतने में डर जाती है
क्या इतनी भोली सी होगी
या मुझे भी पाठ पढ़ा देगी
जो इतनी वो तीखी होगी।