ना हो जाए
ना हो जाए
मन करता है रोज़ाना,आया करूं तेरी गली,
कहीं तू गली में,बदनाम ना हो जाए।
सोचता हूं के बुला लूं, तेरे घर के बाहर तुझे,
कहीं तेरी दूसरों से पहचान ना हो जाये।
दिल चाहता है मिलने को ,गले लगने को तुझे
कहीं छुपी मोहब्बत, सरेआम ना हो जाए।
हश्र देख कर आशिकों के,डर लगता है थोड़ा
कहीं उन जैसा मेरा भी अंजाम ना हो जाए।
पहली बार है शायद ,दिल में मोहब्बत सा थोड़ा
कहीं फिर इन जज़्बातो का,काम तमाम ना हो जाए।