ना गुजर जाए
ना गुजर जाए
अपनी आपबीती में
तुमने गुजार दी
कई दिन और कई रात
तुम्हारी आपबीती
की ना अंत ना शुरुआत
बातों का क्या है
जुड़ते चले जा रहे
हर दिन एक एक बात
सुनने वाले की उमर
ना गुजर जाए
काबू में रखो जज्बात
कि सबके झोली में
सुख ही नहीं
दुख भी है दर्दनाक
जिसे वो छुपाये
रखा है अपने आप
कि उसका सुनने में उमर
ना गुजर जाए !
