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Manu Sweta

Romance

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Manu Sweta

Romance

न जाने की

न जाने की

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आज भी न जाने क्यों

वो दरवाज़े पर खड़ी रहती है

आज भी न जाने क्यों

वो कुछ डरी सी रहती है।


आज भी उसकी खामोशी

मुझे बड़ा डराती है

आज भी वो धीरे से

मेरी आँखों में बस जाती है।


कितना सुकूँ देता था

उसका वो प्यारा सा स्पर्श

आज भी उसकी आवाज़

मेरी रूह को बड़ी तसल्ली देती है।


लेकिन न जाने क्यों उसने

फेर ली मुझसे आंखे अपनी

आज भी उसकी बेरुखी

मुझे अंदर तक झकझोर जाती है।


न जाने उसकी उदास नज़रें

ढूंढती है किसको

उन पथराई आंखों में

आज भी कहीं नमी दिखाई देती है।


न जाने वो बन बैठी एक पहेली सी

जिसका जवाब वो खुद बन बैठी है।

भले ही वो मुझको भुला बैठे ज़ानिब

उसकी यादें अब मेरे

दिल को तसल्ली देती है।


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