मुस्कुराना
मुस्कुराना
मुस्कुराना,
अब एक ज़रुरत है,
इससे ज़िंदगी,
खूबसूरत है।
बुरा नहीं लगता,
आइना देख के ?,
बिना मुस्कुराहट के,
कितनी मायूस ये सूरत है।
भूल क्यों नहीं जाते,
अपने सारे दुःख दर्दों को,
क्या इसके लिए भी,
कोई शुभ-मुहरत है।
ढूँढने से मिल जाते हैं,
भगवान हर जगह,
न मिले तो तेरे घर में भी तो,
भगवान की एक मूरत है।
माँग ले उन्हीं से,
जो माँगना है,
इधर अहंकार की,
क्या ज़रुरत है ?
तू तेरे विश्वास पर,
मुस्कुरा कर खड़ा रह,
ख़ुदबख़ुद भाग जाएगी तकलीफें,
उनकी क्या इतनी ज़ुर्रत है।