मुस्कुरा
मुस्कुरा
मुस्कुरा देते हैं कभी यूँ भी कि
कभी हम भी तेरा रूह ख्याल थे।
भूल जाते हैं फिर ना जाने क्यूँ कि
उठे कितने दिल में सवाल थे।
ये लब करते हैं कभी गुमराह दर्द को
मगर दर्द के तो बिछे बहुत जाल थे।
फितरत है अश्कों पर पैबंद लगाने की
जताते नहीं कि दरारों में क्या हाल थे।