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Archana kochar Sugandha

Abstract

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Archana kochar Sugandha

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मुसाफिर

मुसाफिर

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आसमाँ में विचरने वाले 

जरा नीचे जमीं पर देख

बड़ा ठोस धरातल है

माँ धरती का आँचल है। 


शजरों की झूमती ठंडी-मीठी हैं दुलारें 

दूर-दूर तक फैली तेरे वतन की हैं दयारें 

बड़ी तकलीफ पहुँचाते हैं तेरे हिफाजतगारों को

गुरबत से आने वाले तेरे रिवायतों के अंगारें।


तम में फैलाए जो उजास का प्रकाश

ऐसे प्रवर, प्रबल जुगनूओं की नहीं है कमी

ऊँचाइयों की अंधी दौड़ का मुसाफिर

तेरे ही पासबा की आँखों में क्यों हैं नमी।


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