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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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मुरझाया बसंत

मुरझाया बसंत

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नन्हे हाथों में देखा है मैंने,

मुरझाया सा एक बसंत।


उसके लिये बसंत एक,

रोजी रोटी का जरिया है।

फूलों की खुशबू बिकाऊ इत्र,

और सूरज आग का दरिया है।


उसकी आँखें करती है सवाल,

क्यों फंसी जिंदगी दलदल में।

शीतल पवन घोलें जहर,

सांस घुटे अब पल-पल में।


हम नन्ही कलियाँ इस बसंत,

खिल कर गुलाब एक बन जाए।

अपनी महकती जिंदगी से,

घर आंगन को महका जाए।


हमारी जिंदगी में भी आए,

खिलता हुआ एक बसन्त।


नन्हे हाथों में देखा है मैंने,

मुरझाया सा एक बसंत।


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