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Jai Prakash Pandey

Abstract

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Jai Prakash Pandey

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मुफ्त का पहरेदार

मुफ्त का पहरेदार

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बेचारा प्यारा बिझूका 

मुफ्त में ड्यूटी करता 

कठपुतली बनके रहता 

करता कारनामे गजब 


फटे शर्ट में मुस्कराता 

चिलचिली धूप में नाचता 

पूस की रातों में कुकरता 

कुत्ते जैसा कूं कूं करता


खेत मे फुल मस्ती दिखता 

मुफ्त का चौकीदार बनता  

हरदम अविश्वास करता 

न खुद खाता न खाने देता


बेचारा हमारा बिझूका 

हितैषी बनता किसान का 

देशहित में हरदम बात करता।


वोट मांगता और झटके देता 

पशु पक्षियों को झूठ में डराता 

और हर दम हाथ भी मटकाता 


बेचारा उनका बिझूका 

सिनेमा में बंदूक चलाता 

व्यंग्य में चौकीदारी करता 

कविता में बेवजह घुस जाता


और भूत की अपवाह फैलाता 

योगी और किसान को डराता

कठपुतली बनके माला फेरता। 


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