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S Ram Verma

Abstract

4  

S Ram Verma

Abstract

मुखर प्रेम !

मुखर प्रेम !

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एक नाम होठों से 

फिसला और तैरने 

लगा हवा में !


एक स्वप्न आँखों में

छलका और ठहर 

गया भावों में !


ठीक उसी पल में 

मैंने जाना कितना 

मुश्किल है !


प्रेम को अभिव्यक्त 

कर पाना हु-ब-हु यूँ 

शब्दों में !


कितना मुश्किल है 

प्रेम के आगे यूँ मुखर 

हो पाना !


पर अगर दूसरा कोई

विकल्प हो ही नहीं 

जीवन में !


तो कितना आसान 

हो जाता है अभिव्यक्त

करना होकर मुखर 

प्रेम में !   


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