मुखड़ा
मुखड़ा


आजकल तो बस
एक चाँद नजर आता है मुझे
उसे देखकर मेरा दिल भी
दिन में खो जाता है
और रातों मे जगाता है मुझे
टेंशन कितना भी हो
उसकी स्माइल सजाता है मुझे
यह दिल भी बढ़ा अजीब है,
वो सामने आये तो
न उठाता है मुझे और न
बिठाता है मुझे
आँखों से आँखें मिलाकर
वो मुखड़ा बहुत डराता है मुझे
कितना भी टाल दूँ पर
दिन भर नजर आता है मुझे
रोज़ कहता है गिरती बिजली हूँ मैं
बारिश बनकर वो डराता है मुझे
बदला मौसम दिखाता है मुझे
बारिश बनकर बुलाता है मुझे