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sudheer bollapragada

Tragedy

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sudheer bollapragada

Tragedy

मुझमे शामिल है साये की तरह

मुझमे शामिल है साये की तरह

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मुझमें शामिल है साये की तरह तू

किसी वक़्त के मोड़ पर दुनिया की नज़रो में बिछड़े थे हम यूँ...


आज फिर आया हूँ मैं, उसी गली में देखने तुझे

न रही अब वो बातें,

न रहा अब वो समां

देखने तेरी एक झलक

खींचा चला आया

हूँ मैं


बड़े असों बाद वक़्त निकालके,

तेरी हसी देखने,

फिर एक बार आया हूँ


जुदा हुए हम वो वक़्त की साज़िश थी

अब मैं वो न रहा

बड़ी मुश्किल से सम्भला हूँ,


तुम भी बदल सी गई हो

खामोश हो, यु आँगन से देख रही मुझे,

कुछ बात लगती है मुझे, नहीं तो तुम यूँ होंठ को न चुराती


आँखों से ही बता दो चलो, खुश हो न?

तुम्हारा जवाब शायद नहीं मिला हमें,

जैसा हम सोच रहे थे

ये दिल दिल टूटने की नहीं,


हमें जुल्म-ए-सितम

की गर्दिश लग रही है,

ज़ालिम मुझ पर निकाल लेता अपने दिल की भड़ास

शक की नज़रें खोखला कर देती है, अंदर से


खासियत यही है तुम्हारी,

हर गम हस्ते - हस्ते बर्दाश कर लेती हो

ये झूठी मुस्कान तुम्हारी हमसे,

छिपी नहीं है


दुनिया भी बड़ी ज़ालिम है,

एक तरफ ही इसकी नज़र और सोच है।

आगे तो बढ़ गए पर इनकी नज़रों में अब भी हम मुजरिम है।


अतीत को क्यों देखते है ये,

क्या सोच बदलती नहीं?

जब इंसान ही बदल

जाते है।


हालात से एक समझौता हमने किया था,

क्या एक नज़र वो न बदल सकते

गंगा में हाथ धो लेने से पाप साफ़ क्या होंगे,

जब दिल ही मैले है।


ऐ खुदा मेरे देखने ये सब क्यों न मुझे ही बुला लिया होता

को सहते हुए न देखना पड़ता,

इतनी ज़िंदगियाँ

जा रहा हूँ मैं, शायद न मिल सकूँ अब

तुम्हे ऐसा तड़पता य, फिर न देख सकू में अब,


मुझमें शामिल है साये की तरह

एहसास तेरा है हर पल मुझे

चाहत मेरी रूह की है,

गुजरने वाली हवा भी तुझे छू कर तेरा हाल बयां कर देती है मुझे


बिछड़े ही कहाँ थे हम,

दो जिस्म थे एक जान थे...

मुझमें शामिल है तू साये की तरह...

पर ज़रूरत पड़ने पर याद कर लेना कुछ छींटों सितम की ले लूंगा... तुम्हारे खुदगर्जी से वाकिफ हूँ मैं...

खुद्दार अभी भी हूँ खुद्दारी बाकी है मुझमे

तुम्हारा...


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