STORYMIRROR

Manju Rani

Abstract

3.8  

Manju Rani

Abstract

मुझे ही क्यों

मुझे ही क्यों

1 min
286


मुझे ही क्यों तुमने

अपने कक्ष की शोभा जाना।

अपने चित्रों मेंं मुझे ही

क्यों तुमने प्रदशित किया।


मेरे तन को क्यों

विलास का सामान जाना।

क्या मैं इस धरा

की प्राणी नहीं !


क्या मेरा हृदय तुम्हारे

जैसा नहीं।

क्या मैं तुम्हारी

संगनी नहीं

नहीं !


तो फिर क्यों

अकेले रहते नहीं,

क्यों अपनी सफलता का भागीदार

मुझे बताते हो,

मेरे न मिलने पर

फिर क्यों भटक जाते हो।


परेशान हो गयी हूँ मैं

तुम्हारे दोहरे रूप से,

तुम्हें अगर बहुरूपिया बनना है तो

मुझ से अपना नाता तोड़ो।


मेरी क्षमता अभी तुमने जानी नहीं

जब जानोगे तो पछताओगे,

अपने ही अंतः सागर मेंं

डूब कर रह जाओगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract