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Akhtar Ali Shah

Romance

4  

Akhtar Ali Shah

Romance

मुझे दर्शन करा दो

मुझे दर्शन करा दो

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गीत

मुझे दर्शन करा दो

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गेसूओं से चांद को आजाद करके ।

अपने चेहरे का मुझे दर्शन करा दो।।

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ऐ सुवर्णे, रूप की रानी ,सरापा तू,

फूल टहनी पर खिला है खिलखिलाता तू।

झील में हो चंद्रमा ,जैसे नहाता तू,

तम में जैसे रोशनी का, पूंज भाता तू।।

रूपसी दीदार के खातिर तरसता मैं,

है उदासी मन में भारी, मुस्कुरा दो।

गेसूओं से चाँद को आजाद कर के,

अपने चेहरे का मुझे दर्शन करा दो।। 

***** 

बाग में कलियों का, जैसे मुस्कुराना,

देखकर भंवरों का ,होता गुनगुनाना ।

स्वर्ग से उतरी ,किसी भी अफ्सरा को,

देख संयम ,साधूओं का टूट जाना ।।

ऐसा मंजर है ,डगर फिसलन भरी है,

हूँ पथिक प्यासा ,मुझे पानी पिला दो।

गेसूओं से चाँद को आजाद करके,

अपने चेहरे का मुझे दर्शन करादो ।।*

*****

नाजूकी लब की, तुम्हारे हैं बला की,

मदभरे नैनों में मद ,छलके है साकी।

और रुखसारों पे, बूंदें स्वेद की ये ,

पाँखुरी पर ओंस की, बूंदें जरा सी ।।

देखकर मुझको ,न घबराओ सुकेशी ,

लड़खड़ाया हूँ, तनिक तो आसरा दो।

गेसूओं से चाँद को आजाद करके ,

अपने चेहरे का मुझे दर्शन करा दो ।।

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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच


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