मुझे बस तुम सजाते हो
मुझे बस तुम सजाते हो
जब बारिश भिगाती है प्रिये मुझको तड़पाते हो-
कहते कुछ नहीं लेकिन बहुत कुछ बोल जाते हो..
तेरे एहसासों की बरखा भिगोती है मुझे हरपल-
कभी हाथों से छूते हो कभी ख्वाबों में सताते हो..
हवाये चल रहीं सँग-सँग तेरा एहसास बन करके-
मैं चाहूँ या नहीं चाहूँ मेरी रुह में तुम ही समाते हो..
दीदार-ए-बिना दिलबर के रहे बेनूरी ये 'आईना'-
हिफाज़त की आदत से मुझे बस तुम सजाते हो..
खिलाफ़त करके मुझसे मुझे नाराज़ करते हो-
फ़िर दिलकश-सी हरकतों से मुझको मनाते हो..