मुझे अब मतलब नहीं इस मतलब परस्त दुनिया से
मुझे अब मतलब नहीं इस मतलब परस्त दुनिया से
मुझे अब मतलब नहीं कुछ भी इस मतलब परस्त दुनिया से,
तेरे इश्क़ की लौ ही काफी है ज़िन्दगी के इस तन्हा सफ़र में,
ऐतबार की सजा ऐसी कि इस दुनिया से धोखा खाकर भी,
पल-पल आँसुओं को छुपाया है हमने खामोशी के मंज़र में,
यहाँ तलब है सभी को अपनी, घूमते स्वार्थ का प्याला लिए,
मतलब पूरा करने को मीठा ज़हर लगाते धोखे के खंजर में
सुना था ये दुनिया चलती है प्यार से, हैं सब निरर्थक बातें,
कहने को बस अपने पर चलना तो पड़ता अकेले सफ़र में,
इस मतलबी दुनिया में, एक तुम ही मिले जो अपने से लगे,
पर तुमने छोड़ा हमें लड़खड़ाने को, पथरीली इस डगर में,
दुनिया से मिला धोखा अपनों ने दूर किया, पर ग़म ना हुआ,
पर तुम्हारी रुसवाई ने अकेला किया हमें, अपने ही शहर में,
मोहब्बत का फैसला यूँ सुनाया, हमें राहों में तन्हा कर गए,
वफ़ा की हमने फिर क्यों बाँध न सके तुम्हें इश्क़ की डोर में,
जिसे हम अपना समझते रहे, वही पल पल हमें छलते रहे,
एतबार शब्द ही झूठा लगता अब तो मतलब के इस शोर में,
तुम भी तो चलने लगे मतलब की पटरी पर दुनिया के साथ,
तुम्हारा स्टेशन आया उतर गए, छोड़ा हमें यादों की भोर में,
बंद हो चुके दिल के दरवाजे, उसमें आने की इजाज़त नहीं,
यादें ही अब तो काफी जीने के लिए, साँसों की इस दौड़ में,
इतना तो समझ चुके हैं हम यहाँ कोई किसी का नहीं होता,
कौन अपना, कौन पराया, सब दौड़ रहे स्वार्थ वश, होड़ में।