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मुहब्बत दीया नहीं मशाल है यारों

मुहब्बत दीया नहीं मशाल है यारों

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मुहब्बत दीया नहीं मशाल है यारों
यहाँ इक-इक ज़र्रा कमाल है यारों
मंज़िलों का फ़ैसला लेते हैं कैसे
परिंदों से इक मिरा सवाल है यारों
क़लम अपने आप तो चलता नहीं कभी
अहद-ए-इंक़लाब में उबाल है यारों
सिखाया है तज़ुर्बे ने के बस मां ही
ज़माने में प्यार की मिसाल है यारों
चलो कुछ दिन और अपनी दौलत बचा रखो
अभी तो बाज़ार में उछाल है यारों
इक हसरत-ए-दीद बाक़ी है आँखों में
दर्द से हो चला दिल निढाल है यारों
गये सब रहजन गुज़र के इन राहों से
तन्हाइयों का दौर फिर बहाल है यारों...


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