मुहब्बत बिना जिन्दगी
मुहब्बत बिना जिन्दगी
मुहब्बत बिना जिंदगी जिंदगी क्या
हर एक रंग फीका है गम क्या खुशी क्या
हुआ इश्क तुमको तो खुद जान लोगे
बताएं तुम्हें लुत्फ -ए- दीवानगी क्या
खुदा की इबादत पर हक है सभी का
भला आदमी क्या बुरा आदमी क्या
ए दिल शम'अ उम्मीद की रखिए रोशन
खुदा के यहां रहमतों की कमी क्या
वह खिदमत ही क्या जिस से खुश हो ना मालिक
ना दीदार हो जिससे वह बंदगी क्या
मये- इश्क के जाम भर भर पिलाता
बताऊं मैं साकी की दरियादिली क्या
तेरी दीद को नूर- ए- उल्फत के आगे
क्या शम्मेअमल इल्म की रोशनी क्या
बिना आजिज़ी के नहीं वस्ल मुमकिन
खुदी दिल में रहते हुए आजिज़ी क्या
मुझे उनसे उल्फत है इतना ही काफी
क्या उनकी तवज्जह है और बेरुखी क्या
दरे- पीर से कोई मायूस उठा हो
कोई दास्तां ऐसी तुमने सुनी क्या।