STORYMIRROR

Basudeo Agarwal

Classics

4  

Basudeo Agarwal

Classics

मत्तगयंद सवैया माँ दुर्गा

मत्तगयंद सवैया माँ दुर्गा

1 min
326

(मत्तगयंद सवैया)

 भगण (211) की आवृत्ति के बाद 2 गुरु


माँ दुर्गा (1)

पाप बढ़े चहुँ ओर भयानक हाथ कृपाण त्रिशूलहु धारो।

रक्त पिपासु लगे बढ़ने दुखके महिषासुर को अब टारो।

ताण्डव से अरि रुण्डन मुण्डन को बरसा कर के रिपु मारो।

नाहर पे चढ़ भेष कराल बना कर ताप सभी तुम हारो।।


माँ दुर्गा (2)

नेत्र विशाल हँसी अति मोहक तेज सुशोभित आनन भारी।

क्रोधित रूप प्रचण्ड महा अरि के हिय को दहलावन कारी।

हिंसक शोणित बीज उगे अरु पाप बढ़े सब ओर विकारी।

शोणित पी रिपु नाश करो पत भक्तन की रख लो महतारी।।


माँ दुर्गा (3)

शुम्भ निशुम्भ हने तुमने धरणी दुख दूर सभी तुम कीन्हा।

त्राहि मची चहुँ ओर धरा पर रूप भयावह माँ तुम लीन्हा।

अष्ट भुजा अरु आयुध भीषण से रिपु नाशन माँ कर दीन्हा।

गावत वेद पुराण सभी यश जो वर माँगत देवत तीन्हा।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics