मत ड़र
मत ड़र
छोटी सी प्यारी,
गुड़िया हमारी।
खेल रही थी आंगन में।
कोई ड़र ना था,
उसके मन में।
मीठे उसके बोल,
कान में देते अमृत घोल।
मीठे बोल में,
सखी से बोली।
" अरे आ न ...
ड़र मत !
मैं हूं ना। "
कितना विश्वास,
अपने आप पर।
धीरे धीरे,
बढने लगी उमर।
भरोसा करने लगी,
अपनों पर।
अपने दिखाने लगे डर।
ऐ मत कर, वह मत कर।
हैरान करने लगे,
एक एक प्रश्न कर।
प्रश्न उत्तर देते ,
लगने लगा ड़र।
जो कहती, बचपन में।
आ सखी मत डर।
वह कहती हैं अभी,
मुझे लगता हैं डर।