मत बैठ यूं डर कर
मत बैठ यूं डर कर
क्यों रहता है यूँ चुप चुप सा
क्यों रोता है बैठ कर कोने में
क्यों डरता है आगे बढ़ने से
क्यों डरता है सपनों को बुनने से
क्यों रोता है तकदीर को
क्यों डरता है मेहनत से
क्यों डरता है झूठे लोगो से
क्यों बैठा है कुछ खोने के डर से
नसीब होते है उनके भी जिनके हाथ नही होते
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।
भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
नहीं डरता है शाम होने के भय से
क्यों डरता है मुसीबतों को देख कर
क्यों हट जाता है लड़ने से
तुमको किसने रोका है,
खुद ही ने ख़द को रोका है।
बढ़ा कदम भर साहस और दम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।
