मसान
मसान
अब कहाँ मिल पाते हो तुम
हाँ कभी कभी आते हो तुम
मशान से चल कर सर्द रातों में
गहरी नींद से जगाते हो तुम।
सर्द रात मे यादों के अलाव जलाते हो
फिर देर रात तक यादों से बतलाते हो।
सुबह जाने कहा चले जाते हो तुम
अब कहा मिल पाते हो तुम,
कई कोशिशों के बाद
इतना तो कर जाते हो।
तुम मेरे बतलाने को बतलाते हो तुम
फिर दूर कही चाँद के पास
एक अलाव जलाते हो तुम।
चुपचाप फिर निरा स्वंपन से
उठाकर धुआं सा कुछ उछला जाते हो तुम।
अब कहाँ मिल पाते हो तुम
कभी-कभार तो मसान से आते हो तुम,
कतरा भर धूप कभी कभी किसी
रात को छोड़ जाते हो तुम
कई अलसाई शामें लाते हो तुम
जाते वक्ख्त जाने क्या छोड़ जाते हो तुम।
अब कहाँ मिल पाते हो तुम
हाँ कभी कभी तो आते हो तुम
मसान से उठ कर आते हो तुम,
जल कच्छप चलचित्र जीवन मरण
संगीत सब रंगों मे रौशन है
जो अकल्पनीय अद्वितीय
सब कुछ कह जाते हो तुम
अब कहाँ मिल पाते हो तुम
कभी-कभी मसान से उठ
आते हो तुम,
लम्बे सफर मे कही चाय की
तरह सालों बाद मिले यार की
तरह तन्हाई में एक हसीन
ख्वाब की तरह नदी किनारे
अंधेरे में खिले चाँद की तरह
कई-कई कहानियां
लिख जाते हो तुम
अब कहाँ मिल पाते हो तुम
हाँ कभी कभी तो आते हो
तुम मसान से उठ कर
सारी सारी रात बतलाते हो तुम।