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SUMAN ARPAN

Abstract Others

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SUMAN ARPAN

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मरहम

मरहम

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कहते है वक़्त से बड़ा कोई मरहम नहीं, 

वक़्त हर घाव भर देता है!

रिसते नासूर है के बस बहे जाते हैं!

रिसते नासूर है....


दर्द कुछ उमड़ उमड़ कर

ताज़ा हो जाते हैं!

सौ बार हौसलों को घोंट कर

मरहम बनाते हैं 

ज़ख्म पिछले सूखते भी नहीं ,

कि वो नया गम दे जाते है!

रिसते नासूर है...


चुन चुन कर समेटे काँटे और

इंतज़ार फूलों का था

पर तक़दीर में मेरी कैक्टस

सजा जाते हैं !

रिसते नासूर है....

दर्द की बारिश में हम अकेले थे 

जब बरसी ख़ुशियाँ तो वो दामन

फैलाये आ जाते है!

रिसते नासूर है...


माना हर ख़्वाहिश अधूरी और

बिखरे अरमान है 

पर ज़िंदा रहने के लिए कोई

सबब भी ज़रूरी है 

सबक़ दिन रात दिये जाते है!

रिसते है नासूर.... 


वक़्त के मरहम पर एक बार,

बस आखिरी बार भरोसा तो कर

क्या पता जागता नासूर,थक हर सो जाएँ!

ज़िन्दगी में दौर फिर बाहरों का आये 

आख़िर परिन्दे भी थक हार लौट आते हैं!

रिसते नासूर बन.....


रहमत की चाँदनी में मुक़द्दर

फिर लिखो ऐ ख़ुदा 

शायद अब की बार दर्द नहीं ,

मरहम नसीब में आएँ ऐ ख़ुदा!

कभी-कभी पतझड़ में भी फूल

मुस्कुराते हैं!

रिसते नासूर है....



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