मृगमरीचिका
मृगमरीचिका


सुख-दुख जीवन के अहम हिस्से
सुख को बांटने उठे हजारों हाथ
दुख में अपने भी हुए पराये
आज की नही,सदियों पुरानी बात
साथी दुख अपना सुख पराया।
बना ले करोड़ों के महल
सब है तेरी हाथ का मैल
जिस दिन धुलेगा
नही होगा पास तेरे अपना या ग़ैर
साथी दुख अपना, सुख पराया।
विश्वास नहीं तो आजमा ले
सुख पा मत बौरा
दुख में संयम बरत
पायेगा दुनिया की हर दौलत
साथी दुख अपना, सुख पराया।
सुख दुख की मृगमरीचिका में न भटक
जो मिला, हाथ बढ़ा थाम ले
ढूंढ उसमें जीवन की धूप छांव
उजास फैला लेगी, प्राची की नव किरण
साथी दुख अपना, सुख पराया।